नमस्कार, सभी को इस पर निबंध लेखन असम का बिहु-उत्सव के बारे मे लिखा गया है।
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असम का बिहु-उत्सव / निबंध लेखन class 10 hindi/ Online read
हमारे देश में प्राचीन काल से ही उत्सव मनाये जाते हैं। इन उत्सवों द्वारा हमारे – देश की सभ्यता एवं संस्कृति के विषय में पर्याप्त जानकारी मिल जाती है।
असम प्रदेश का प्रमुख उत्सव बिहु है। इस उत्सव को कब और कैसे मनाया जाता है। इस त्यौहार के द्वारा असम की सभ्यता एवं संस्कृति का पूर्ण परिचय प्राप्त होता है।
असम बिहु उत्सव परम्परागत रूप से श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। बिहु के विषय में यह जानना कठिन है कि यह उत्सव कब और क्यों मनाना आरम्भ किया।
लेकिन इसके विषय में लोगों का विश्वास है कि इस त्यौहार का मुख्य ‘ आधार कृषि हैं। यह उत्सव तीन प्रकार का होता है।
- रंगाली बिहु – इस उत्सव का सीधा सम्बन्ध कषि से है। इस उत्सव को मनाने के लिए कोई विशेष दिन निर्धारित नहीं हैं।
लेकिन यह उत्सव चैत्र माह के अन्तिम दिन से प्रारम्भ होते है। यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह उत्सव लगातार सात दिन तक चलता है।
इस उत्सव के प्रथम दिन को गुरु बिहु कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पशुओं को नहला-धूलाकर सजाया-सँवारा जाता है।
उनके गले में नये-नये रस्से बाँधे जाते हैं व उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसका प्रमुख कारण पशु कृषि का सबसे बड़ा सहारा है।
अत: पशुओं की पूजाअचना के बाद उनके गले में स्वागतार्थ लौकी व बैंगन की माला डाली जाती हैं। इस दिन बहुत से लोग अपना अधिकांश समय पशुओं को सजाने-संवारने में व्यतीत करते हैं।
वास्तव में गरु बिह उत्सव एक अनोखा त्यौहार है, जो अन्य प्रान्तों – इस प्रकार नहीं मनाया जाता।
आज भी सभ्यता और संस्कृति में परिवर्तन होने के उपरान्त भी असमवासी अपने परम्परागत उत्सवों को पहले की भाँति आनन्द से मनाते हैं।
प्रथम दिन के बाद द्वितीय दिन इस त्यौहार को प्रात:काल से मनाया जाता है।
इस दिन सभी लोग उठते ही अपने पूज्य जनों को प्रणाम करते हैं तथा आशीर्वाद लेते हैं।
इस पर्व के विषय में लोगों की धारणा है कि यदि कोई गुरुजन के साथ प्रातःकाल न सम्मिलित हो पाये, तो वह व्यक्ति स्वयं को भाग्यहीन मानता है।
इस पर्व में पत्नी अपने पति को, बहिन अपने भाई अथवा प्रियजनों को अपने हाथ से बना वस्त्र पहनने को देती है। इस पर्व पर लोग मिष्ठान्न वगैरह बनाते व खाते हैं।
इसके अतिरिक्त दान भी करते हैं। असम के समाज में यह पर्व. ‘कवच’ की भाँति होता है। जिस प्रकार कवच सुरक्षा हेतु होता है, उसी प्रकार बिहुवान का अपना महत्त्व होता है।
इस उत्सव के बाद ‘हुजस्विति’ का कार्यक्रम होता है। इस पर्व पर नवयुवक एवं नवयुवतियाँ मिलकर गीत गाते हैं। इसके बाद स्वेच्छा से वर चुनने का कार्यक्रम होता है।
इस अवसर पर नवयुवक व युवती खेतों में जाकर मिलते हैं। इसके बाद वे पति-पत्नी चुन लेते हैं। लेकिन आधुनिक युग में नवयुवक व युवती स्टेज पर गाना गाते हैं तथा समाज के समक्ष अपने दाम्पत्य को स्वीकार करते हैं।
इस उत्सव के बाद मेहंदी लगाने का कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम में हाथों और पैरों में मेहंदी लगायी जाती है। सातवें दिन बूढ़े एवं बूढ़ियों का एक विशेष खेल होता है।
इस खेल को वे कौड़ी द्वारा खेलते हैं। इस दिन एक मेले का आयोजन होता है, उसे मथेली या संकीर्तन कहा जाता है। इस प्रकार यह पर्व समस्त बच्चे, बूढ़े एवं युवा वर्ग हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।
आज भी असम में रंगाली बिहु के अवसर पर बडी धूमधाम लगातार सात दिन तक रहती है।
- कंगाली बिहु – इस उत्सव का सम्बन्ध खेती से है। इस समय नयी फसल का अंकुरण हो जाता है। यह पर्व कार्तिक मास में मनाया जाता है।
इस त्यौहार के अवसर पर घर में रखा अनाज समाप्त हो जाता है। धान में नये गच्छे लग जाते हैं। इस पर्व के अवसर पर लोग लक्ष्मी के स्वागतार्थ एक माह तक आकाशदीप जलाते हैं।
कुछ लोग तुलसी के पौधे की पूजा करते हैं। वे पेड़ की परिक्रमा करके दिया भी जलाते हैं।
इस उत्सव को मनाते समय लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी फसल अच्छी रहे, जिससे सभी लोग धनधान्य से सम्पन्न हो सकें।
आज भी असमवासी प्रकृति की पूजा देवी के रूप में करते हैं।
- भोगाली या माघ बिहु – यह पर्व आनन्द, उत्साह एवं मौज-मस्ती का पर्व है। यह उत्सव पुस मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है।
इस पर्व को असम की सभी जनजातियाँ मनाती हैं। इस उत्सव पर लोग घरों के बाहर अथवा खेतों या मैदान में भेलाघर का निर्माण करते हैं।
इसके पश्चात् गाँव के सभी लोग भेलाघर में एकत्रित होकर भोज का आयोजन करते हैं। दिन भर भेलाघर में आनन्द मनाते हैं।
अगले दिन सुबह होने से पूर्व ही भेलाघर को जला दिया जाता है।
दस दिन अनेक प्रकार की खेल प्रतियोगिताएं होती हैं। यह खेल लगातार कई दिन तक चलते हैं। इस अवसर पर सभी लोगों के घर धनधान्य से परिपूर्ण होते हैं।
लोगों को कोई भी परेशानी और चिंता रहित होने के कारण आनन्दमग्न रहते । वास्तव में केवल असम ही ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्रकृति की कृपा है तथा असमवासी आज भी श्रद्धा और उल्लास से बिह उत्सव मनाते हैं।